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उत्प्रेक्षा अलंकार | Utpreksha Alankar in Hindi

उत्प्रेक्षा अलंकार परिभाषा:

उत्प्रेक्षा अलंकार एक प्रकार का शब्दालंकार है। इसमें उपमेय में उपमान होने की सम्भावना या कल्पना की जाती है।

उत्प्रेक्षा अलंकार उदाहरण:

  • “सोहत ओढ़े पीत पर, स्याम सलोने गात। मनहुँ नील मनि सैण पर, आतप परयौ प्रभात।।”

इस उदाहरण में, प्रियतम के पीले वस्त्रों को नीलमणि के पहाड़ और उसके श्यामल गात को प्रभातकालीन सूर्य की किरणों से उपमित किया गया है।

उत्प्रेक्षा अलंकार के भेद:

  • वस्तुप्रेक्षा: जब किसी वस्तु में किसी अन्य वस्तु होने की सम्भावना कल्पित की जाती है।
  • हेतुप्रेक्षा: जब किसी कार्य में किसी अन्य कार्य का कारण कल्पित किया जाता है।
  • फलोत्प्रेक्षा: जब किसी फल में किसी अन्य फल की सम्भावना कल्पित की जाती है।

उत्प्रेक्षा अलंकार के अन्य उदाहरण:

  • “तेरी चंचल चितवन में, कारी नयन झुके। मनहुँ मदन मधुकर, कमल को छुए।।”
  • “बाजुबंद खनकाते हैं, पैजन बजते हैं। मनहुँ नूपुर झंकार, मधुर मधुर बजते हैं।।”

उत्प्रेक्षा अलंकार की विशेषताएं:

  • इसमें उपमेय और उपमान के बीच सादृश्य कल्पना द्वारा स्थापित किया जाता है।
  • इसमें ‘जनु’, ‘मानो’, ‘मनहुँ’, ‘इव’, ‘ज्यों’, ‘सरीखा’ आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
  • यह अलंकार भावों को प्रभावशाली बनाने में सहायक होता है।

उत्प्रेक्षा अलंकार का महत्व:

उत्प्रेक्षा अलंकार काव्य को सुंदर और प्रभावशाली बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह कल्पना शक्ति का प्रयोग कर भावों को व्यक्त करने में सहायक होता है।

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