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रूपक अलंकार: Roopak Alankar – परिभाषा, उदाहरण, अर्थ
रूपक अलंकार (Roopak Alankar) परिभाषा:
रूपक अलंकार एक प्रकार का शब्दालंकार है जिसमें उपमेय और उपमान में पूर्ण तादात्म्य स्थापित कर दिया जाता है। दूसरे शब्दों में, उपमेय को सीधे उपमान के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, मानो उपमेय वही वस्तु है जो उपमान है। इसमें उपमा करने के लिए शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता है, जैसे “है”, “के समान” आदि।
उदाहरण:
- “चन्द्रमा शीतल है।” (यहाँ चन्द्रमा को सीधे शीतल के रूप में प्रस्तुत किया गया है।)
- “वह गुलाब है हँसती हुई।” (यहाँ हँसती हुई लड़की को सीधे गुलाब के रूप में प्रस्तुत किया गया है।)
- “जीवन संगीत है।” (यहाँ जीवन को सीधे संगीत के रूप में प्रस्तुत किया गया है।)
रूपक अलंकार (Roopak Alankar) अर्थ:
रूपक अलंकार का प्रयोग उपमेय के गुणों को अधिक प्रभावी ढंग से व्यक्त करने के लिए किया जाता है। यह उपमान के माध्यम से उपमेय की छवि को ज्वलंत बनाता है और पाठक के मन में गहरी छाप छोड़ता है।
रूपक अलंकार के अन्य उदाहरण:
- “तूफानों में भी जलता रहा, दिया बनकर।” (यहाँ दृढ़ व्यक्ति को दिया के रूप में प्रस्तुत किया गया है।)
- “पुस्तक ज्ञान का भंडार है।” (यहाँ पुस्तक को ज्ञान के भंडार के रूप में प्रस्तुत किया गया है।)
- “वह फूल खिली है सुबह के साथ।” (यहाँ मुस्कुराती हुई लड़की को खिले हुए फूल के रूप में प्रस्तुत किया गया है।)
रूपक अलंकार की विशेषताएं:
- उपमेय और उपमान के बीच पूर्ण तादात्म्य स्थापित किया जाता है।
- उपमा करने के लिए शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता।
- रूपक अलंकार भावों को अधिक प्रभावी और सजीव बनाता है।
रूपक अलंकार का महत्व:
रूपक अलंकार काव्य और साहित्य में एक महत्वपूर्ण अलंकार है। यह भाषा को सौंदर्यपूर्ण और प्रभावशाली बनाता है तथा पाठक के मन में गहरी छाप छोड़ता है।