Chhayawad ki Visheshtaen | छायावाद की विशेषताएं
छायावाद परिचय
छायावाद हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण युग है जो 1918 में ‘प्रसाद’ जी की ‘झरना’ कविता के प्रकाशन के साथ शुरू हुआ और 1938 तक विकसित होता रहा। यह युग द्विवेदी युग के यथार्थवाद से हटकर, कल्पनावाद और रहस्यवाद की ओर झुका। छायावाद हिंदी काव्य में रोमांस, वेदना, प्रकृति प्रेम, और आध्यात्मिकता का एक नया दौर लेकर आया।
छायावाद की विशेषताएं:
1. कल्पनावाद और रहस्यवाद:
छायावादी कवि कल्पना और रहस्यवाद के प्रति आकर्षित थे। उन्होंने अपनी कविताओं में कल्पना और रहस्य का अद्भुत मिश्रण प्रस्तुत किया।
2. व्यक्तिवाद:
छायावादी कवियों ने व्यक्ति के आंतरिक भावों और अनुभूतियों को व्यक्त करने पर अधिक ध्यान दिया। उन्होंने अपनी कविताओं में व्यक्तिगत वेदना, प्रेम, और आध्यात्मिकता को उजागर किया।
3. प्रकृति प्रेम:
छायावादी कवियों ने प्रकृति के प्रति गहन प्रेम व्यक्त किया। उन्होंने प्रकृति को मानवीय भावनाओं का प्रतीक माना।
4. भाषा और शैली:
छायावादी कवियों ने भाषा और शैली के प्रयोग में नवीनता लाए। उन्होंने प्रतीकात्मक भाषा, अलंकारों का चतुराईपूर्ण प्रयोग, और संगीतमयता पर विशेष ध्यान दिया।
5. प्रमुख छायावादी कवि:
प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी वर्मा, और सुमित्रानंदन पंत छायावादी युग के प्रमुख कवि थे।
छायावाद हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण युग है। इस युग ने हिंदी कविता को नई दिशा प्रदान की और कल्पनावाद, रहस्यवाद, और व्यक्तिवाद के नए आयामों को उजागर किया।
यहां कुछ छायावादी कविताओं के उदाहरण दिए गए हैं:
- प्रसाद: ‘झरना’, ‘कामायनी’, ‘आँसू’
- पंत: ‘पल्लव’, ‘ग्राम्या’, ‘गुंजन’
- निराला: ‘परिमल’, ‘गीतिका’, ‘तुलसीदास’
- महादेवी वर्मा: ‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘यामा’
- सुमित्रानंदन पंत: ‘पल्लव’, ‘ग्राम्या’, ‘गुंजन’
अगर आप छायावाद के बारे में अधिक जानना चाहते हैं, तो आप इन पुस्तकों का अध्ययन कर सकते हैं:
- ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ – रामचंद्र शुक्ल
- ‘छायावाद: एक अध्ययन’ – नंददुलारे वाजपेयी
- ‘आधुनिक हिंदी साहित्य का इतिहास’ – रामस्वरूप चतुर्वेदी