श्रृंगार रस – परिभाषा, उदाहरण
श्रृंगार रस संस्कृत साहित्य में नौ रसों (भावनाओं) में से एक है। यह रस दो मुख्य रूपों में विभाजित होता है:
1. संयोग श्रृंगार: प्रेमियों के मिलन और प्रेमपूर्ण लीलाओं का वर्णन। 2. वियोग श्रृंगार: प्रेमियों के विरह और उनके दुःख का वर्णन।
श्रृंगार रस की परिभाषा
श्रृंगार रस की व्यापक रूप से स्वीकार की गई परिभाषा इस प्रकार है:
“श्रृंगार रस वह स्थायी भाव है जो प्रिय के अनुराग (प्रेम) के कारण उत्पन्न होता है। यह रस सुखदायी होता है और इसके स्थायी भाव के साथ हास, हर्ष, उल्लास, मद, स्मृति, काम, निर्वेद और शोक के संचारी भाव भी मिल जाते हैं।”
अन्य महत्वपूर्ण पहलू:
- स्थायी भाव: रति (प्रेम)
- आलंबन: प्रिय व्यक्ति
- उद्दीपन: प्रिय के गुण, रूप, सौंदर्य आदि
- अनुभाव: हास, हर्ष, उल्लास, मद, स्मृति, काम, निर्वेद और शोक के संचारी भाव
- फल: आनंद, सुख
उदाहरण:
श्रृंगार रस के अनगिनत उदाहरण पूरे भारतीय साहित्य में मिलते हैं, जिनमें रामायण, महाभारत, सूरदास की कृष्ण लीलाएँ, बिहारी के सतसई, रवींद्रनाथ टैगोर की गीतांजली, और महादेवी वर्मा की नीहार शामिल हैं।
अतिरिक्त जानकारी:
- श्रृंगार रस न केवल प्रेमियों के बीच प्रेम का वर्णन करता है, बल्कि माता-पिता और बच्चों के बीच, गुरु और शिष्य के बीच, और मित्रों के बीच के प्रेम का भी वर्णन कर सकता है।
- श्रृंगार रस का सौंदर्य और प्रेम के प्रति प्रशंसा जगाने में महत्वपूर्ण योगदान है।
मुझे आशा है कि यह परिभाषा आपको श्रृंगार रस को समझने में मदद करेगी।