Sandhi Kise Kahate Hain?
संधि शब्द का अर्थ है ‘मेल’ या ‘जोड़ना’। व्याकरण में, संधि दो वर्णों के मेल से उत्पन्न होने वाले विकार को कहा जाता है। जब दो वर्ण एक साथ आते हैं, तो उनके उच्चारण में कुछ परिवर्तन होता है। यह परिवर्तन संधि कहलाता है।
संधि के प्रकार:
संधि को मुख्य रूप से तीन प्रकारों में विभाजित किया जाता है:
- स्वर-संधि: जब दो स्वर मिलकर एक नया स्वर बनाते हैं, तो उसे स्वर-संधि कहा जाता है। उदाहरण के लिए, ‘देव’ और ‘इंद्र’ मिलकर ‘देवेंद्र’ बन जाते हैं।
- व्यंजन-संधि: जब दो व्यंजन मिलकर एक नया व्यंजन बनाते हैं, तो उसे व्यंजन-संधि कहा जाता है। उदाहरण के लिए, ‘कर्म’ और ‘योग’ मिलकर ‘कर्मयोग’ बन जाते हैं।
- विशेष संधि: कुछ विशेष प्रकार की संधियाँ होती हैं जो स्वर-संधि और व्यंजन-संधि दोनों से अलग होती हैं। इन्हें विशेष संधि कहा जाता है। उदाहरण के लिए, ‘अन’ और ‘ईश्वर’ मिलकर ‘अनन्त’ बन जाते हैं।
संधि के नियम:
संधि के कुछ नियम हैं जिनका पालन करके हम सही संधि बना सकते हैं। इन नियमों में से कुछ हैं:
- जब दो स्वर मिलते हैं, तो उनमें से एक स्वर का लोप हो जाता है।
- जब दो व्यंजन मिलते हैं, तो उनमें से एक व्यंजन का उच्चारण बदल जाता है।
- कुछ विशेष मामलों में, दो वर्ण मिलकर एक नया वर्ण बनाते हैं।
संधि का महत्व:
संधि का महत्व बहुत अधिक है। संधि के बिना, भाषा का उच्चारण अशुद्ध हो जाता है। संधि से भाषा में मधुरता और प्रवाह आता है।
उदाहरण:
- स्वर-संधि:
- देव + इंद्र = देवेंद्र
- राम + ईश्वर = रामेश्वर
- सीता + उमा = सीता-उमा
- व्यंजन-संधि:
- कर्म + योग = कर्मयोग
- तप + ज्ञान = तपःज्ञान
- धन + ईश्वर = धनैश्वर
- विशेष संधि:
- अन + ईश्वर = अनन्त
- सु + उप = सुप
- दु + अक्षर = दुराक्षर
संधि भाषा का एक महत्वपूर्ण अंग है। संधि के नियमों को समझकर हम भाषा का सही उच्चारण कर सकते हैं और अपनी भाषा को अधिक मधुर और प्रवाहमय बना सकते हैं।
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